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कुछ देर काली रात के पहलू में लेट के - शाहिद कबीर कविता - Darsaal

कुछ देर काली रात के पहलू में लेट के

कुछ देर काली रात के पहलू में लेट के

लाया हूँ अपने हाथों में जुगनू समेट के

दो चार दाँव खेल के वो सर्द पड़ गया

अब क्या करोगे ताश के पत्तों को फेट के

उस साँवले से जिस्म को देखा ही था कि बस

घुलने लगे ज़बाँ पे मज़े चाकलेट के

जैसे कोई लिबास न हो उस के जिस्म पर

यूँ रास्ता चले है बदन को समेट के

मैं उस के इंतिज़ार में बैठा ही रह गया

कपड़ों में रख गया वो बदन को लपेट के

हर फ़लसफ़े को वक़्त ने ऐसे मिटा दिया

जैसे कोई नुक़ूश मिटा दे सलेट के

वो हँस रहा था दूर खड़ा और चंद लोग

ले जा रहे थे उस को कफ़न में लपेट के

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In Hindi By Famous Poet Shahid Kabir. is written by Shahid Kabir. Complete Poem in Hindi by Shahid Kabir. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.