किताब-ए-दिल के वरक़ जो उलट के देखता है

किताब-ए-दिल के वरक़ जो उलट के देखता है

वो काएनात को औरों को हट के देखता है

अगर नहीं है बिछड़ने का रंज कुछ भी उसे

वो बार बार मुझे क्यूँ पलट के देखता है

नदी बढ़ी हो कि सूखी हर एक सूरत में

किनारा अपने ही पानी से हट के देखता है

किसी को तीरगी पागल न कर सके जब तक

कहाँ चराग़ की लौ से पलट के देखता है

न हो सकेंगे कभी उस के ज़ेहन-ओ-दिल रौशन

वरक़ वरक़ जो किताबों को रट के देखता है

उसी पे खुलती हैं दुनिया की वुसअ'तें 'शाहिद'

जो अपनी ज़ात में हर पल सिमट के देखता है

(601) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Shahid Jamal. is written by Shahid Jamal. Complete Poem in Hindi by Shahid Jamal. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.