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शहर-ए-निगाराँ में फिरते हैं हम आवारा रात ढले - शाहिद इश्क़ी कविता - Darsaal

शहर-ए-निगाराँ में फिरते हैं हम आवारा रात ढले

शहर-ए-निगाराँ में फिरते हैं हम आवारा रात ढले

शायद कोई दरीचा वा हो शायद कोई दीप जले

कोई ग़म-आगीं नग़्मा छेड़े कोई 'मीर' के शे'र पढ़े

कम कम दर्द की कलियाँ महकें पल पल ग़म की रात ढले

वीराँ वीराँ दिल की बस्ती सूनी सूनी राह-ए-वफ़ा

ऐसे कठिन रस्ते पे कोई दो-चार क़दम तो साथ चले

चाक हर इक गुल का दामन और आवारा हर मौज-ए-सबा

जैसे मुझ से मिल न सका हो कोई बिछड़ते वक़्त गले

ख़त्म हुआ है 'इश्क़ी' तुम पर सिलसिला-ए-वहशत-ज़दगाँ

शायद कोई शख़्स तुम्हारे बा'द वफ़ा का नाम न ले

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In Hindi By Famous Poet Shahid Ishqi. is written by Shahid Ishqi. Complete Poem in Hindi by Shahid Ishqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.