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नुक़ूश-ए-रहगुज़र-ए-शौक़ सब मिटा देना - शाहिद इश्क़ी कविता - Darsaal

नुक़ूश-ए-रहगुज़र-ए-शौक़ सब मिटा देना

नुक़ूश-ए-रहगुज़र-ए-शौक़ सब मिटा देना

रही है जाँ सो उसे भी कहीं गँवा देना

रह-ए-हयात में हर मोड़ पर है इक उलझन

बिछड़ न जाऊँ कहीं दोस्तो सदा देना

ग़ुबार-ए-वक़्त ने धुँदला दिए हैं इस के नुक़ूश

ज़रा चराग़-ए-मोहब्बत की लौ बढ़ा देना

सुना है शहर में फिर आ गया है वो क़ातिल

मिले तो दोस्तो मेरा पता बता देना

तलब तो करना मिरी उम्र-ए-राएगाँ का हिसाब

हिसाब तूल-ए-शब-ए-हिज्र का चुका देना

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In Hindi By Famous Poet Shahid Ishqi. is written by Shahid Ishqi. Complete Poem in Hindi by Shahid Ishqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.