नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ उस की ख़ातिर रहन-ए-जाम करो
नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ उस की ख़ातिर रहन-ए-जाम करो
'मीर' के बादा-ए-ग़म-ख़ुर्दा को मय-ख़्वारों में आम करो
क़श्क़ा खींचो दैर में बैठो पैरवी-ए-असनाम करो
केश-ए-बरहमन को अपनाओ जुर्म-ए-वफ़ा को आम करो
ख़्वाह कोई बोहतान तराशो या आएद इल्ज़ाम करो
तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ से पहले कुछ और हमें बद-नाम करो
साज़-ए-शिकस्त-ए-दिल की क़ीमत कौन चुकाने आएगा
गीतों की दूकान बढ़ाओ नग़्मों को नीलाम करो
एक ख़याल-ए-ख़ाम है माना इस की तमन्ना इस का शौक़
उम्र-ए-ख़िज़्र मयस्सर हो तो सिर्फ़ ख़याल-ए-ख़ाम करो
नगरी नगरी फिरे मुसाफ़िर बस्ती बस्ती छानी ख़ाक
टुक उस ज़ुल्फ़ के साए में भी कोई घड़ी आराम करो
जिन के दम से ग़ुर्बत में भी बज़्म-ए-तमन्ना रौशन है
प्यार उन सारी माह-वशों को 'इश्क़ी' नाम-ब-नाम करो
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