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नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ उस की ख़ातिर रहन-ए-जाम करो - शाहिद इश्क़ी कविता - Darsaal

नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ उस की ख़ातिर रहन-ए-जाम करो

नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ उस की ख़ातिर रहन-ए-जाम करो

'मीर' के बादा-ए-ग़म-ख़ुर्दा को मय-ख़्वारों में आम करो

क़श्क़ा खींचो दैर में बैठो पैरवी-ए-असनाम करो

केश-ए-बरहमन को अपनाओ जुर्म-ए-वफ़ा को आम करो

ख़्वाह कोई बोहतान तराशो या आएद इल्ज़ाम करो

तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ से पहले कुछ और हमें बद-नाम करो

साज़-ए-शिकस्त-ए-दिल की क़ीमत कौन चुकाने आएगा

गीतों की दूकान बढ़ाओ नग़्मों को नीलाम करो

एक ख़याल-ए-ख़ाम है माना इस की तमन्ना इस का शौक़

उम्र-ए-ख़िज़्र मयस्सर हो तो सिर्फ़ ख़याल-ए-ख़ाम करो

नगरी नगरी फिरे मुसाफ़िर बस्ती बस्ती छानी ख़ाक

टुक उस ज़ुल्फ़ के साए में भी कोई घड़ी आराम करो

जिन के दम से ग़ुर्बत में भी बज़्म-ए-तमन्ना रौशन है

प्यार उन सारी माह-वशों को 'इश्क़ी' नाम-ब-नाम करो

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In Hindi By Famous Poet Shahid Ishqi. is written by Shahid Ishqi. Complete Poem in Hindi by Shahid Ishqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.