न ख़ुदा है न नाख़ुदा है कोई
न ख़ुदा है न नाख़ुदा है कोई
ज़िंदगी गोया सानेहा है कोई
न तो बे-क़ुफ़्ल है दरीचा-ए-ज़ेहन
न दर-ए-दिल खुला हुआ है कोई
न मज़ा गुमरही में मिलता है
न सँभलने का रास्ता है कोई
मैं कि तन्हा था अब भी तन्हा हूँ
फिर भी मुझ से बिछड़ गया है कोई
ज़ात मत देख कर्ब-ए-ज़ात को देख
कैसे अंदर से टूटता है कोई
मुब्तला रूह के अज़ाब में हूँ
कब से दिल को खुरच रहा है कोई
जाने किस सुब्ह की तमन्ना में
रात-भर शम्अ' साँ जला है कोई
फ़ुर्सत-ए-ज़िंदगी बहुत कम है
और बहुत देर आश्ना है कोई
तुम भी सच्चे हो मैं भी सच्चा हूँ
कब यहाँ झूट बोलता है कोई
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