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मिरे क़रीब से गुज़रा इक अजनबी की तरह - शाहिद इश्क़ी कविता - Darsaal

मिरे क़रीब से गुज़रा इक अजनबी की तरह

मिरे क़रीब से गुज़रा इक अजनबी की तरह

वो कज-अदा जो मिला भी तो ज़िंदगी की तरह

मिला न था तो गुमाँ उस पे था फ़रिश्तों का

जो अब मिला है तो लगता है आदमी की तरह

किरन किरन उतर आई है रौज़न-ए-दिल से

किसी हसीं की तमन्ना भी रौशनी की तरह

मिरी निगाह से देखो तो हम-ज़बाँ हो जाओ

कि दुश्मनी भी किसी की है दोस्ती की तरह

न मिलने वाले किनारों का नाम ठहरा शौक़

गुरेज़-पा है जहाँ हुस्न इक नदी की तरह

न खुल सका तो लहू हो के बह गया है दिल

कभी खिला तो महक उठेगा कली की तरह

हज़ार शे'र हैं और एक ख़ामुशी की अदा

हज़ार रंग हैं और एक सादगी की तरह

बहुत दिनों में मिले हैं हम आज 'इश्क़ी' से

नहीं वो फिर भी कोई शख़्स है उसी की तरह

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In Hindi By Famous Poet Shahid Ishqi. is written by Shahid Ishqi. Complete Poem in Hindi by Shahid Ishqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.