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फ़स्ल-ए-गुल तोहमत-ए-जुनूँ लाई - शाहिद इश्क़ी कविता - Darsaal

फ़स्ल-ए-गुल तोहमत-ए-जुनूँ लाई

फ़स्ल-ए-गुल तोहमत-ए-जुनूँ लाई

बस्ती बस्ती हुई है रुस्वाई

शहर में जब से आ गया हूँ तिरे

और भी बढ़ गई है तन्हाई

आरज़ू एक ना-शगुफ़्ता कली

जो सर-ए-शाख़-सार मुरझाई

आशिक़ी इक दबी हुई सी चोट

भीगे मौसम में जो उभर आई

ज़िंदगी शाम-ए-ग़म की बाँहों में

इक सुलगती हुई सी तन्हाई

लोग कहते हैं अहल-ए-दिल को कभी

ज़िंदगी रास ही नहीं आई

हौसला हो तो ऐ ग़म-ए-जानाँ

कौन तेरा नहीं तमन्नाई

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In Hindi By Famous Poet Shahid Ishqi. is written by Shahid Ishqi. Complete Poem in Hindi by Shahid Ishqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.