Ghazals of Shahid Ishqi
नाम | शाहिद इश्क़ी |
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अंग्रेज़ी नाम | Shahid Ishqi |
जन्म की तारीख | 1926 |
मौत की तिथि | 2006 |
जन्म स्थान | Rampur |
वो हर्फ़-ए-शौक़ हूँ जिस का कोई सियाक़ न हो
सीने हैं चाक और गरेबाँ सिले हुए
शहर-ए-निगाराँ में फिरते हैं हम आवारा रात ढले
रात है शहर-ए-बुताँ है और हम
रात भी बाक़ी है सहबा भी शीशा भी पैमाना भी
फिर उसी शोख़ की तस्वीर उतर आई है
नुक़ूश-ए-रहगुज़र-ए-शौक़ सब मिटा देना
नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ उस की ख़ातिर रहन-ए-जाम करो
न ख़ुदा है न नाख़ुदा है कोई
मुब्तला रूह के अज़ाब में हूँ
मिरे क़रीब से गुज़रा इक अजनबी की तरह
मौत का क्यूँ कर ए'तिबार आए
महताब है न अक्स-ए-रुख़-ए-यार अब कोई
लुत्फ़ से तेरे सिवा दर्द महक जाता है
लज़्ज़त-ए-संग न पूछो लोगो उम्र अगर हाथ आए फिर
लाए तो नक़्द-ए-जाँ सर-ए-बाज़ार क्या कहें
लब तक जो न आया था वही हर्फ़-ए-रसा था
लब तक जो न आया था वही हर्फ़-ए-रसा था
कुछ अपनी बात कहो कुछ मिरी सुनो मत सो
किस किस के आँसू पूछोगे और किस किस को बहलाओगे
जिस को चाहा था न पाया जो न चाहा था मिला
जिस को चाहा था न पाया जो न चाहा था मिला
जाने क्या वज्ह-ए-बेगानगी है
हर परी-वश का ए'तिबार करो
हर मर्ग-ए-आरज़ू का निशाँ देर तक रहा
ग़ैर की आग में कोई भी न जलना चाहे
फ़स्ल-ए-गुल तोहमत-ए-जुनूँ लाई
एक तुम्हारे प्यार की ख़ातिर जग के दुख अपनाए थे
इक न आने वाले का इंतिज़ार करते हैं
दिए हैं रंज सारे आगही ने