माझी ने डुबोया है लहरों ने उछाला है
गर्दिश के समुंदर का दस्तूर निराला है
Mohsin Naqvi
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सुना है तेरी ज़माने पे हुक्मरानी है
तुझे इस गाँव से जाना है इक दिन
मेरे दिल में घर भी बनाता रहता है
लगता है जिस का रुख़-ए-ज़ेबा मह-ए-कामिल मुझे
इस रंग बदलती दुनिया में पहचान बड़ी ही मुश्किल है
बेताबियों को मेरी बढ़ाने लगी हवा
ख़याल उन का सताए जा रहा है
तेरी फ़य्याज़ी के थे चर्चे बहुत मैं ने सुने
जो तुम से मिला होगा जो तुम ने दिया होगा
मुफ़लिसों की बस्ती को बेकसी ने घेरा है
इन सभी दरख़्तों को आँधियों ने घेरा है