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मुज़्तरिब सा रहता है मुझ से बात करते वक़्त - शाहिद फ़रीद कविता - Darsaal

मुज़्तरिब सा रहता है मुझ से बात करते वक़्त

मुज़्तरिब सा रहता है मुझ से बात करते वक़्त

फेर कर कलाई को बार बार देखे वक़्त

बारहा ये सोचा है घर से आज चलते वक़्त

हादिसा न हो जाए राह से गुज़रते वक़्त

कोई भी नहीं पहुँचा आग से बचाने को

मैं था और तन्हाई अपने घर में जलते वक़्त

इस क़दर अंधेरा था इस क़दर था सन्नाटा

चाँदनी भी डरती थी गाँव में बिखरते वक़्त

मैं तो ख़ैर नादिम था इस लिए भी चुप चुप था

वो भी कुछ नहीं बोला रास्ता बदलते वक़्त

वो विसाल दो पल का भूलता नहीं शाहिद

मैं ने उस को चूमा था सीढ़ियाँ उतरते वक़्त

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In Hindi By Famous Poet Shahid Fareed. is written by Shahid Fareed. Complete Poem in Hindi by Shahid Fareed. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.