मुज़्तरिब सा रहता है मुझ से बात करते वक़्त
मुज़्तरिब सा रहता है मुझ से बात करते वक़्त
फेर कर कलाई को बार बार देखे वक़्त
बारहा ये सोचा है घर से आज चलते वक़्त
हादिसा न हो जाए राह से गुज़रते वक़्त
कोई भी नहीं पहुँचा आग से बचाने को
मैं था और तन्हाई अपने घर में जलते वक़्त
इस क़दर अंधेरा था इस क़दर था सन्नाटा
चाँदनी भी डरती थी गाँव में बिखरते वक़्त
मैं तो ख़ैर नादिम था इस लिए भी चुप चुप था
वो भी कुछ नहीं बोला रास्ता बदलते वक़्त
वो विसाल दो पल का भूलता नहीं शाहिद
मैं ने उस को चूमा था सीढ़ियाँ उतरते वक़्त
(491) Peoples Rate This