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मोहब्बत मुझ से कहती थी ज़रा होश्यार दामन से - शाहिद भोपाली कविता - Darsaal

मोहब्बत मुझ से कहती थी ज़रा होश्यार दामन से

मोहब्बत मुझ से कहती थी ज़रा होश्यार दामन से

जुनूँ आवाज़ देता था वो उलझे ख़ार दामन से

मिरे अश्क-ए-मुसलसल राएगाँ होने नहीं देता

बहुत नज़दीक रहता है ख़याल-ए-यार दामन से

सँभल ओ रहरव-ए-राह-ए-तलब मंज़िल न खो जाए

लिपटता है ग़ुबार-ए-राह ना-हमवार दामन से

जबीं-साई कहाँ की किस का सज्दा कुछ जो क़ाबू हो

छुपा कर बैठ जाऊँ आस्तान-ए-यार दामन से

हवा देते रहे दानिस्ता दीवाना समझ कर वो

जुनूँ होता रहा अक्सर मिरा बेदार दामन से

उभरती जाती है दामन पे अश्क-ए-ख़ूँ की रंगीनी

नुमायाँ होता जाता है नया गुलज़ार दामन से

उसे तूफ़ाँ कहूँ या जान-ए-साहिल क्या कहूँ 'शाहिद'

न उभरे जज़्ब हो कर अश्क-ए-दरिया-बार दामन से

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In Hindi By Famous Poet Shahid Bhopali. is written by Shahid Bhopali. Complete Poem in Hindi by Shahid Bhopali. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.