उड़ता हुआ इक बादल था
उड़ता हुआ इक बादल था
या फिर तेरा आँचल था
चीख़ रहा था सड़कों पर
शायद वो भी पागल था
अब तो गंदा नाला हूँ
पहले में गंगा-जल था
आबादी से दूर बहुत
हरा-भरा इक जंगल था
मेरे जिस्म के अंदर ही
शायद मेरा क़ातिल था
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उड़ता हुआ इक बादल था
या फिर तेरा आँचल था
चीख़ रहा था सड़कों पर
शायद वो भी पागल था
अब तो गंदा नाला हूँ
पहले में गंगा-जल था
आबादी से दूर बहुत
हरा-भरा इक जंगल था
मेरे जिस्म के अंदर ही
शायद मेरा क़ातिल था
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