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ए'तिराफ़ - शाहिद अख़्तर कविता - Darsaal

ए'तिराफ़

जल बुझे आँखों में ख़्वाबों के महकते पैकर

अब कहीं कोई शरारा है न शो'ला न धुआँ

खो गए वक़्त की पथरीली गुज़रगाहों पर

चंद बे-नाम तमन्नाओं के क़दमों के निशाँ

एक परछाईं हूँ जिस में न कोई रंग न रूप

सिर्फ़ एहसास हो तुम जिस का कोई नाम नहीं

मैं भी पा-बस्ता हूँ हालात की ज़ंजीरों में

तुम पे भी अहद-ए-फ़रामोशी का इल्ज़ाम नहीं

मेरे एहसास पे भी बर्फ़ जमी है जैसे

आँच देता नहीं जज़्बात को कोई मौसम

धड़कनें आज तुम्हारी भी हैं बे-लफ़्ज़-ओ-बयाँ

अब बरसती नहीं दिलदार नज़र से शबनम

मैं भी कुछ सूरत-ए-हालात से बरगश्ता हूँ

तुम भी हो अपने ख़यालात पे पछताई हुई

मैं ने भी जान लिया है कि हक़ीक़त क्या है

तुम भी ख़्वाबों से नज़र आती हो उकताई हुई

जब न मैं मैं हूँ न तुम तुम हो तो फिर आँखों में

ये गिराँबारी-ए-एहसास-ए-शनासाई क्यूँ

बार हो जाँ पे तो पैमान-ए-रिफ़ाक़त कैसा

बोझ हूँ दिल पे तो जज़्बों की पज़ीराई क्यूँ

मुझ को यूँ प्यार की रुस्वाइयाँ मंज़ूर नहीं

तुम भी इस रिश्ते पे इल्ज़ाम न आने देना

मेरी साँसों में न महकेगी तुम्हारी ख़ुश्बू

तुम भी होंटों पे मिरा नाम न आने देना

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In Hindi By Famous Poet Shahid Akhtar. is written by Shahid Akhtar. Complete Poem in Hindi by Shahid Akhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.