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वो बे-नियाज़ शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल गया - शाहिद अहमद शोएब कविता - Darsaal

वो बे-नियाज़ शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल गया

वो बे-नियाज़ शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल गया

अब उस के गुम-शुदा होने का एहतिमाल गया

वो इक ख़याल कि हर-दम जहाँ ख़याल गया

कभी अज़ाब में रक्खा कभी सँभाल गया

जो शहर-ए-लफ़्ज़-ओ-मआ'नी से दूर दूर रहा

वो बे-हुनर तिरी गलियों से बा-कमाल गया

हुदूद-ए-वक़्त से आगे उड़ान भरते रहे

अमीर-ए-वक़्त का मंसब गया जलाल गया

हमें तो रुत के बदलने की कुछ ख़बर भी नहीं

हम अपनी नींद से जागे तो हर मलाल गया

असीर-ए-शब वो रहा उम्र-भर मगर इस बार

उठा तो ख़ाक से सूरज कई उछाल गया

न जाने किस को वो आवाज़ देता रहता है

कभी जो पूछा तो वो शख़्स हँस के टाल गया

उदास उदास है अब भी 'शोएब' फ़स्ल-ए-मुराद

उमीद उमीद में लगता है फिर ये साल गया

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In Hindi By Famous Poet Shahid Ahmad Shoaib. is written by Shahid Ahmad Shoaib. Complete Poem in Hindi by Shahid Ahmad Shoaib. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.