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मिसाल-ए-संग-ए-तपीदा जड़े हुए हैं कहीं - शाहीन मुफ़्ती कविता - Darsaal

मिसाल-ए-संग-ए-तपीदा जड़े हुए हैं कहीं

मिसाल-ए-संग-ए-तपीदा जड़े हुए हैं कहीं

हमारे ख़्वाब यहीं पर पड़े हुए हैं कहीं

उलझ रही है नई डोर नर्म हाथों से

पतंग शाख़-ए-शजर पर अड़े हुए हैं कहीं

जिन्हें उगाया गया बरगदों की छाँव में

भला वो पेड़ चमन में बड़े हुए हैं कहीं

गुज़र गया वो क़यामत की चाल चलते हुए

जो मुंतज़िर थे वहीं पर खड़े हुए हैं कहीं

बुला रहा है कोई शहर-ए-आरज़ू से हमें

मगर ये पाँव ज़मीं में गड़े हुए हैं कहीं

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In Hindi By Famous Poet Shaheen Mufti. is written by Shaheen Mufti. Complete Poem in Hindi by Shaheen Mufti. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.