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हमारा बकरा - शाहीन इक़बाल असर कविता - Darsaal

हमारा बकरा

सब की आँखों का है तारा बकरा

कितना प्यारा है हमारा बकरा

अहल-ए-दुनिया ने दिखाई जो छुरी

सम्त-ए-उक़्बा को सिधारा बकरा

उस की सेह्हत का भला राज़ है क्या

मिस्ल-ए-गाए है तुम्हारा बकरा

हम ने समझा है अना का ख़ूगर

''में-में'' कर के जो पुकार बकरा

जैसे बे-चारा हो फ़ाक़े से निढाल

इस तरह खाता है चारा बकरा

तेरी आवाज़ में है सोज़-ओ-गुदाज़

दिल को खींचे तिरा नारा बकरा

आह ज़ालिम वो क़साई भाई

हाए मज़लूम बिचारा बकरा

चोर-उचक्कों से हिफ़ाज़त के लिए

बाँध कर रखिए ख़ुदा-रा बकरा

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