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हैरानी का बोझ - शाहीन ग़ाज़ीपुरी कविता - Darsaal

हैरानी का बोझ

मिट्टी की दीवार पे इक खूँटी से लटकी

मेरी यादों की ज़म्बील

जिस में छुपे थे

रंग-बिरंगे कपड़ों के बोसीदा कतरन

गोल गोल सी नन्ही मुन्नी कर धनियों के दाने

इक अमरूद की डाली काट के बाबा ने जो बनाई थी

वो टेढ़ी-मेढ़ी एक ग़ुलैल

नीले पीले मटियाले और लाल परों की ढेरी

चौड़े मुँह का इक मुँह ज़ोर सा काठ का अड़ियल घोड़ा

अपनी अकड़ में खाता हुआ बग्घी वाले का कोड़ा

इतनी मुद्दत बा'द जो खोली मैं ने वो ज़म्बील

इक नन्हा इस में से निकल कर जैसे सरपट भागा

देखता था पीछा ही वो अपना और न अपना आगा

और उलझता जाता जितना खुलता लिपटा धागा

जैसे भयानक सपने देखे कई दिनों का जागा

अब के फिर वो नज़र आया तो सरगोशी में पूछूँगा

तुम तो मेरे यार थे फिर क्यूँ

सालों साल नहीं मिलने को

अपने शुऊ'र की हैरानी का बोझ उठाए

जाने कितनी कठिन राहों से गुज़रते हो

जग वालों पर हँसते हो या छुप छुप आहें भरते हो

बस्ती छोड़ के जंगल जंगल रैन बसेरा करते हो

या फिर इक पाताल की निचली तह में उतर जा मरते हो

शायद तुम भी गौतम हो और अपने आप से डरते हो

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In Hindi By Famous Poet Shaheen Gazipuri. is written by Shaheen Gazipuri. Complete Poem in Hindi by Shaheen Gazipuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.