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गुलाब-ब-कफ़ - शाहीन ग़ाज़ीपुरी कविता - Darsaal

गुलाब-ब-कफ़

बहार की ये दिल-आवेज़ शाम

जिस की तरफ़

क़दम उठाए हैं मैं ने

कि उस से हाथ मिलाऊँ

और इक शगुफ़्ता शनासाई की बिना रक्खूँ

फिर अपनी ख़ाना-बदोशी की मुश्तरक लय पर

उसे गुलाब-ब-कफ़ ख़ेमा-ए-जुनूँ तक लाऊँ

कुछ उस की ख़ैर ख़बर पूछूँ

और कुछ अपनी कहूँ

कहूँ कि कितने ही पतझड़ के मौसम आए गए

मगर इन आँखों की सहर-उल-बयानियाँ न गईं

कहूँ कि गरचे अनासिर ने तोहमतें बाँधीं

जुनूँ ज़दों की मगर सख़्त-जानियाँ न गईं

कहूँ कि एक हैं अंदेशे सब मिरे तेरे

कहूँ अलग नहीं जीने के ढब मिरे तेरे

कहूँ कि एक से हैं रोज़-ओ-शब मिरे तेरे

कहूँ कि मिलते हैं नाम-ओ-नसब मिरे तेरे

कहूँ अज़ल से जुनूँ कारोबार अपना है

हज़ार जब्र हो कुछ इख़्तियार अपना है

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In Hindi By Famous Poet Shaheen Gazipuri. is written by Shaheen Gazipuri. Complete Poem in Hindi by Shaheen Gazipuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.