दिल जहाँ भी डूबा है उन की याद आई है
दिल जहाँ भी डूबा है उन की याद आई है
हाए क्या सुकूँ-परवर दर्द-ए-आश्नाई है
तुम सराब बन बन कर अपनी छब दिखाते हो
तिश्ना-लब मुसाफ़िर की जान पर बन आई है
ये कशाकश-ए-हस्ती कितनी दूर ले आई
दिन कहाँ गुज़ारा है शब कहाँ गँवाई है
ज़िंदगी तिरी ख़ातिर तेरे दर्द-मंदों ने
इक जहान की तोहमत अपने सर उठाई है
रोज़-ओ-शब मिरी ख़ातिर जिस का दिल धड़कता था
अब ये हाल है उस की याद भी पराई है
मैं सदा-ए-गुम-गश्ता मैं अदा-ए-ना-ज़ेबा
मेरा नाम कितनों को वज्ह-ए-ख़ुद-नुमाई है
ख़्वाब हो चुके 'शाहीं' सारे वाक़िए फिर भी
शहर शहर में अब तक दास्ताँ-सराई है
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