बदन के रूप का एजाज़ अंग अंग थी वो
बदन के रूप का एजाज़ अंग अंग थी वो
मिरे लिए तो मिरी रूह की तरंग थी वो
गुलों के नाम खुली पीठ पर मिरी लिख कर
ख़िज़ाँ के फैलते लम्हों से महव-ए-जंग थी वो
सियह घटाओं से किरनें तराश लेती थी
मिरी हयात की इक जागती उमंग थी वो
वो ज़ख़्म-ख़ूर्दा-ए-हालात ख़ुद रही लेकिन
तमाम निकहत ओ नग़्मा तमाम रंग थी वो
न जाने कितने थे 'शाहीन' उस के मतवाले
अगरचे शाख़ में उलझी हुई पतंग थी वो
(499) Peoples Rate This