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ग़ुंचा ग़ुंचा मौसम-ए-रंग-ए-अदा में क़ैद था - शाहीन बद्र कविता - Darsaal

ग़ुंचा ग़ुंचा मौसम-ए-रंग-ए-अदा में क़ैद था

ग़ुंचा ग़ुंचा मौसम-ए-रंग-ए-अदा में क़ैद था

दिल वो नादाँ था कि अपनी ही अना में क़ैद था

आँख की मोमी गली प्यासी थी प्यासी ही रही

शबनमी बादल ज़माने की हवा में क़ैद था

बे-रुख़ी की घर की दीवारों पे थी चूना-कली

ज़र्रा ज़र्रा अज्नबिय्यत की फ़ज़ा में क़ैद था

आसमाँ के ताक़ पर सजते रहे इक इक चराग़

मैं ज़मीं का चाँद अपने ही ख़ला में क़ैद था

रात के इफ़रीत ने शब-ख़ून मारा बे-तरह

कारवान-ए-सुब्ह ज़ंजीर-ए-दुआ में क़ैद था

कौन था वो जिस ने अपने ख़ून से लिक्खा था ख़त

किस के दिल का रंग इस बर्ग-ए-हिना में क़ैद था

आँख के आँगन से ख़्वाबों का परिंदा उड़ गया

रात भर 'शाहीन' यादों की चिता में क़ैद था

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In Hindi By Famous Poet Shaheen Badr. is written by Shaheen Badr. Complete Poem in Hindi by Shaheen Badr. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.