अहल-ए-दुनिया के लिए ये माजरा है मुख़्तलिफ़
अहल-ए-दुनिया के लिए ये माजरा है मुख़्तलिफ़
पत्थरों के शहर में एक आइना है मुख़्तलिफ़
मेरे बच्चे कितने हैराँ हैं कि इन के वास्ते
पेश-रौ के नक़्श-ए-पा का सिलसिला है मुख़्तलिफ़
डोलती है साँस के तूफ़ाँ में कश्ती ज़ीस्त की
बादबानी के लिए अब के हवा है मुख़्तलिफ़
साअ'तों की धूप ने जब भी तसल्ली दी घनी
क़द्द-ओ-क़ामत अपने साए का मिला है मुख़्तलिफ़
चुन लें आँखों से हमारी नींद की सब किर्चियाँ
वक़्त के गूँगे क़बीले की सज़ा है मुख़्तलिफ़
देखिए तो सब्ज़ खेतों में शुआ'ओं का है रक़्स
सोचिए तो मौसम-ए-रंग-ए-अदा है मुख़्तलिफ़
चश्म-ए-हैरत से न यूँ देखा करें 'शाहीन-बद्र'
मौसम-ए-इख़्लास की ठंडी हवा है मुख़्तलिफ़
(544) Peoples Rate This