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सियाही गिरती रहे और दिया ख़राब न हो - शाहीन अब्बास कविता - Darsaal

सियाही गिरती रहे और दिया ख़राब न हो

सियाही गिरती रहे और दिया ख़राब न हो

ये ताक़-ए-चश्म अब इतना भी क्या ख़राब न हो

हर आने वाला इसी तरह से तुझे चाहे

मिरी बनाई हुई ये फ़ज़ा ख़राब न हो

अज़ल अबद में ठनी है सो मैं निकलता हूँ

मिरी कड़ी से तिरा सिलसिला ख़राब न हो

हम उस हवा से तो कहते हैं क्यूँ बुझाया चराग़

कहीं चराग़ की अपनी हवा ख़राब न हो

मैं अपनी शर्त पे आया था इस ख़राबे में

सो मेरे साथ कोई दूसरा ख़राब न हो

मिरी ख़राबी को यकजा करो कहीं न कहीं

मिरा मुआ'मला अब जा-ब-जा ख़राब न हो

ख़राब हूँ भले इस इश्तिहा में हम और तुम

पर एक दूसरे का ज़ाइक़ा ख़राब न हो

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In Hindi By Famous Poet Shaheen Abbas. is written by Shaheen Abbas. Complete Poem in Hindi by Shaheen Abbas. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.