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ग़ुबार शाम-ए-वस्ल का भी छट गया - शाहीन अब्बास कविता - Darsaal

ग़ुबार शाम-ए-वस्ल का भी छट गया

ग़ुबार शाम-ए-वस्ल का भी छट गया

ये आख़िरी हिजाब था जो हट गया

हुज़ूरी-ओ-ग़याब में पड़ा नहीं

मुझे पलटना आता था पलट गया

तिरी गली का अपना एक वक़्त था

इसी में मेरा सारा वक़्त कट गया

ख़याल-ए-ख़ाम था सो चीख़ उठा हूँ फिर

मिरा ख़याल था कि मैं निमट गया

हमारे इंहिमाक का उड़ा मज़ाक़

वही हुआ न फिर वरक़ उलट गया

बजा कि दोनों वक़्त फिर से आ मिले

मगर जो वक़्त दरमियाँ से हट गया

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In Hindi By Famous Poet Shaheen Abbas. is written by Shaheen Abbas. Complete Poem in Hindi by Shaheen Abbas. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.