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शाहीन अब्बास Ghazal In Hindi - Best शाहीन अब्बास Ghazal Shayari & Poems - Darsaal

Ghazals of Shaheen Abbas

Ghazals of Shaheen Abbas
नामशाहीन अब्बास
अंग्रेज़ी नामShaheen Abbas
जन्म की तारीख1965

ज़मीं का आख़िरी मंज़र दिखाई देने लगा

ऊपर जो परिंद गा रहा है

सुब्ह-ए-वफ़ा से हिज्र का लम्हा जुदा करो

सियाही गिरती रहे और दिया ख़राब न हो

पहले तो मिट्टी का और पानी का अंदाज़ा हुआ

नक़्श था और नाम था ही नहीं

नक़्श करता रम-ओ-रफ़्तार इनाँ-गीर को मैं

मोहब्बत में न जाने क्यूँ हमें फ़ुर्सत ज़ियादा है

मिरे बनने से क्या क्या बन रहा था

मौजा-ए-ख़ून-ए-परेशान कहाँ जाता है

मौजा-ए-ख़ून-ए-परेशान कहाँ जाता है

मैं हुआ तेरा माजरा तू मिरा माजरा हुआ

कुछ नहीं लिक्खा हुआ फिर भी पढ़ा जाता है क्या

कुछ भी न जब दिखाई दे तब देखता हूँ मैं

ख़्वाब खुलना है जो आँखों पे वो कब खुलता है

ख़ुद में उतरें तो पलट कर वापस आ सकते नहीं

कैसा कैसा दर पस-ए-दीवार करना पड़ गया

झगड़े अपने भी हों जब चाक-गरेबानों के

जारी थी अभी दुआ हमारी

इब्तिदा सा कुछ इंतिहा सा कुछ

हम रह गए हमारा ख़लल क्यूँ नहीं रहा

गुज़रे नहीं और गुज़र गए हम

ग़ुबार शाम-ए-वस्ल का भी छट गया

दिए का काम अब आँखें दिखाना रह गया है

देखना है कब ज़मीं को ख़ाली कर जाता है दिन

दर-ए-इम्काँ से गुज़र कर सर-ए-मंज़र आ कर

दाने के बा'द कुछ नहीं दाम के बा'द कुछ नहीं

बोलते बोलते जब सिर्फ़ ज़बाँ रह गए हम

बनते बनते अपने पेच-ओ-ख़म बने

ऐसा नहीं कि उस ने बनाया नहीं मुझे

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