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यादों की दीवार गिराता रहता हूँ - शाहबाज़ रिज़्वी कविता - Darsaal

यादों की दीवार गिराता रहता हूँ

यादों की दीवार गिराता रहता हूँ

मैं पानी से आँख बचाता रहता हूँ

साहिल पे कुछ देर अकेले होता हूँ

फिर दरिया से हाथ मिलाता रहता हूँ

यादों की बरसात तो होती रहती है

मैं आँखों से ख़्वाब गिराता रहता हूँ

'साहिर' की हर नज़्म सुना कर मजनूँ को

मैं सहरा का दर्द बढ़ाता रहता हूँ

दुनिया वाले मुझ को पागल कहते हैं

मैं सूरज से आँख मिलाता रहता हूँ

पत्थर-वत्थर मुझ से नफ़रत करते हैं

मैं अंधों को राह दिखाता रहता हूँ

मेरे पीछे क़ैस की आँखें पड़ गई हैं

दरिया दरिया प्यास बुझाता रहता हूँ

मुझ को दश्त-ए-सुकूत सदाएँ देता है

सहरा सहरा ख़ाक उड़ाता रहता हूँ

मुझ को मेरे नाम से जाना जाता है

मैं 'रिज़वी' का ढोंग रचाता रहता हूँ

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In Hindi By Famous Poet Shahbaz Rizwi. is written by Shahbaz Rizwi. Complete Poem in Hindi by Shahbaz Rizwi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.