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दयार-ए-शाम न बुर्ज-ए-सहर में रौशन हूँ - शहबाज़ नदीम ज़ियाई कविता - Darsaal

दयार-ए-शाम न बुर्ज-ए-सहर में रौशन हूँ

दयार-ए-शाम न बुर्ज-ए-सहर में रौशन हूँ

मैं एक उम्र से अपने ही घर में रौशन हूँ

हुजूम-ए-शब-ज़दगाँ से फ़रार हो कर आज

जमाल-ए-शोला-ए-शम-ए-सहर में रौशन हूँ

मैं मुंतज़िर हूँ तो फिर मुंतज़र भी आएगा

चराग़-ए-जाँ की तरह रह-गुज़र में रौशन हूँ

न जाने कब मिरी हस्ती धुआँ धुआँ हो जाए

मैं एक साअत-ए-ना-मोतबर में रौशन हूँ

मिरे हरीफ़-ए-सुख़न कुछ तुझे ख़बर भी है

तिरे सबब से हिसार-ए-हुनर में रौशन हूँ

निज़ाम-ए-गर्दिश-ए-दौराँ मिरा मुक़द्दर है

मैं इक सितारे की सूरत सफ़र में रौशन हूँ

अकेला जान के ख़ुद को न हो उदास कि मैं

मिसाल-ए-अश्क तिरी चश्म-ए-तर में रौशन हूँ

मुझे तलाश न कर मेरी ज़ात में 'शहबाज़'

बहुत दिनों से जहान-ए-दिगर में रौशन हूँ

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In Hindi By Famous Poet Shahbaz Nadeem Ziai. is written by Shahbaz Nadeem Ziai. Complete Poem in Hindi by Shahbaz Nadeem Ziai. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.