सो गया ओढ़ के फिर शब की क़बाएँ सूरज

सो गया ओढ़ के फिर शब की क़बाएँ सूरज

जिन के दामन पे छिड़कता था ज़ियाएँ सूरज

आज तक राख समेटी नहीं जाती अपनी

हम ने चाहा था हथेली पे सजाएँ सूरज

आँख बुझ जाए तो इक जैसे हैं सारे मंज़र

अपनी बीनाई के दम से हैं घटाएँ सूरज

मेरी पलकों पे लरज़ते हुए आँसू मोती

मेरे बुझते हुए होंटों पे दुआएँ सूरज

ज़िंदगी जिन की हो सहरा की मसाफ़त 'शहबाज़'

ऐसे लोगों को कभी रास न आएँ सूरज

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In Hindi By Famous Poet Shahbaz Khwaja. is written by Shahbaz Khwaja. Complete Poem in Hindi by Shahbaz Khwaja. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.