हालात 'शहाब' आँख उठाने नहीं देते
बच्चों को मगर ईद मनाने की पड़ी है
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मिस्मार हूँ कि ख़ुद को उठाने लगा था मैं
मौत टलती है तो दिल दुखता है
था बाम-ए-फ़लक ख़ाक-बसर आने लगा हूँ
जब भी कश्ती के मुक़ाबिल भँवर आता है कोई
बीनाई को पलकों से हटाने की पड़ी है