जब भी कश्ती के मुक़ाबिल भँवर आता है कोई
जब भी कश्ती के मुक़ाबिल भँवर आता है कोई
जगमगाता सर-ए-साहिल नज़र आता है कोई
बे-रुख़ी उस की दिलाती है जहाँ का एहसास
लिए दुनिया की ख़बर बे-ख़बर आता है कोई
शिद्दत-ए-यास में चुपके से उजालों की तरह
मेरे तारीक ख़यालों में दर आता है कोई
तन-ए-तन्हा तो सफ़र दिल पे गिराँ गुज़रेगा
मुंतज़िर हूँ कि मिरे साथ अगर आता है कोई
डूब जाता है जुदाई की शफ़क़ में दिन को
उफ़ुक़-ए-ख़्वाब से शब को उभर आता है कोई
अश्क पीता हूँ मैं तिरयाक़ समझ कर जिस वक़्त
ज़हर बन कर रग-ए-जाँ में उतर आता है कोई
हिज्र सामाँ है रवाँ सू-ए-शब-ए-वस्ल 'शहाब'
धूप ओढ़े हुए ज़ेर-ए-शजर आता है कोई
(517) Peoples Rate This