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मैं ही मैं बिखरा हुआ हूँ राह-ता-मंज़िल तमाम - शहाब जाफ़री कविता - Darsaal

मैं ही मैं बिखरा हुआ हूँ राह-ता-मंज़िल तमाम

मैं ही मैं बिखरा हुआ हूँ राह-ता-मंज़िल तमाम

ख़ाक-दाँ ता-आसमाँ छाया है मुस्तक़बिल तमाम

पी चुकी कितनी ही मौजों का लहू साहिल की रेत

लाशें ही लाशें नज़र आईं सर-ए-साहिल तमाम

घर को दिन भर की मता-ए-रह-नवर्दी सौंप दी

सई-ए-पैहम का ग़ुबार-ए-शहर था हासिल तमाम

देखना सब ने उठा रक्खी है काँधों पर सलीब

भेस में मक़्तूल के रू-पोश हैं क़ातिल तमाम

माहताब उभरा भी तो जाने कहाँ डूबा कि रात

कर दिया मौजों ने छलनी सीना-ए-साहिल तमाम

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In Hindi By Famous Poet Shahab Jafri. is written by Shahab Jafri. Complete Poem in Hindi by Shahab Jafri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.