दिल से
हज़ार ख़याल निकलते
जब से
तुम्हें देखा है
तुम से पहले
ज़िंदगी में कोई
चमक नहीं थी
अब हाथ भी
दुआ को उठते हैं
अब नमाज़ भी मैं पढ़ता हूँ
मैं ऐसा नहीं था
तुम को देखा तो
दस्त-ए-सवाल हुआ मैं
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मेरी शाइ'री
'मीर'-ओ-'ग़ालिब' की तरह सेहर-बयाँ से निकले
तेरी संग
फ़रियाद
मा'दूम होती ख़ुश्बू
मैं और तुम
मेरा उस का साथ
जो मैं ने सोचा था
समुंदर का रास्ता
मेरा शहर
दामन में आँसू मत बोना