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इश्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया जो हो सो हो - शाह नियाज़ अहमद नियाज़ कविता - Darsaal

इश्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया जो हो सो हो

इश्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया जो हो सो हो

ऐश-ओ-निशात-ए-ज़िंदगी छोड़ दिया जो हो सो हो

अक़्ल के मदरसे से हो इश्क़ के मय-कदा में आ

जाम-ए-फ़ना व बे-ख़ुदी अब तो पिया जो हो सो हो

लाग की आग लग उठी पम्बा तरह सा जल गया

रख़्त-ओ-जूद जान-आे-तन कुछ न बचा जो हो सो हो

हिज्र की सब मुसीबतें अर्ज़ कीं उस के रू-ब-रू

नाज़-ओ-अदा से मुस्कुरा कहने लगा जो हो सो हो

दुनिया के नेक-ओ-बद से काम हम को 'नियाज़' कुछ नहीं

आप से जो गुज़र गया फिर उसे क्या जो हो सो हो

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In Hindi By Famous Poet Shah Niyza Ahmad Niyaz. is written by Shah Niyza Ahmad Niyaz. Complete Poem in Hindi by Shah Niyza Ahmad Niyaz. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.