Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_ff297a0f799198db1dec9cecd06b4bb4, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
वाँ कमर बाँधे हैं मिज़्गाँ क़त्ल पर दोनों तरफ़ - शाह नसीर कविता - Darsaal

वाँ कमर बाँधे हैं मिज़्गाँ क़त्ल पर दोनों तरफ़

वाँ कमर बाँधे हैं मिज़्गाँ क़त्ल पर दोनों तरफ़

याँ सफ़-ए-उश्शाक़ हैं ज़ेर-ओ-ज़बर दोनों तरफ़

ज़ुल्फ़ का सर-बस्ता कूचा माँग का रस्ता है तंग

दिल तिरी शामत है मत जा बे-ख़तर दोनों तरफ़

दैर-ओ-काबा में तफ़ावुत ख़ल्क़ के नज़दीक है

शाहिद-ए-मअ'नी का हर सूरत है घर दोनों तरफ़

है वो दरिया में नहाता मैं हूँ ग़र्क़-ए-आब-ए-शर्म

कुछ अजब इक माजरा है तुर्फ़ा-तर दोनों तरफ़

इश्क़ वो है जिस के हाथों क़ुमरी ओ बुलबुल के आह

ज़ेर-ए-सर्व-ओ-गुल पड़े हैं बाल-ओ-पर दोनों तरफ़

चश्म में क्या नूर है दिल में भी उस का है ज़ुहूर

ज़ाहिर-ओ-बातिन वही है जल्वा-गर दोनों तरफ़

आमद-ओ-शुद में है देखी सैर-ए-बस्ती-ओ-अदम

हम को इस मेहमाँ-सरा में है सफ़र दोनों तरफ़

शम्अ कुछ जलती नहीं परवाना भी देता है जी

सोज़िश-ए-उल्फ़त से है जी का ज़रर दोनों तरफ़

पंजा-ए-मिज़्गाँ पे रख्खूँ क्यूँ न मैं दिल और जिगर

नज़्र को लाया हूँ तेरी कर नज़र दोनों तरफ़

दिल में गर आता है तो आ जान-ए-मन आँखों की राह

इस मकान-ए-दिल-कुशा के हैं ये दर दोनों तरफ़

कुछ हबाब ओ बहर में मत फ़र्क़ समझो ऐ 'नसीर'

देखो टुक चश्म-ए-हक़ीक़त खोल कर दोनों तरफ़

(503) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Shah Naseer. is written by Shah Naseer. Complete Poem in Hindi by Shah Naseer. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.