मैं ने बिठला के जो पास उस को खिलाया बीड़ा
मैं ने बिठला के जो पास उस को खिलाया बीड़ा
क़त्ल पर मेरे रक़ीबों ने उठाया बीड़ा
मुश्तइल ता-ब-फ़लक आतिश-ए-पुर-दूद हुई
मल के जिस वक़्त मिसी तुम ने चबाया बीड़ा
सुर्ख़-रू हो के ये किस मुँह से तू अब बोले है
मैं ने किस रोज़ तिरे हाथ से पाया बीड़ा
मेरी और आप की मज्लिस में बिगड़ जाएगी
तुम ने देने को किसी के जो बनाया बीड़ा
सब्ज़-बख़्ती कहूँ क्या अपनी कि वो जान गया
पढ़ के अफ़्सूँ में खिलाने को जो लाया बीड़ा
लाल कर दूँगा अभी बज़्म में मुँह कितनों के
हाथ से तू ने किसी को जो खिलाया बीड़ा
ऐ 'नसीर' उस के गले का हूँ न मैं क्यूँकर हार
आज गुल-रू ने मुझे देख चबाया बीड़ा
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