लिया न हाथ से जिस ने सलाम आशिक़ का
लिया न हाथ से जिस ने सलाम आशिक़ का
वो कान धर के सुने क्या पयाम आशिक़ का
क़ुसूर-शेख़ है फ़िरदौस ओ हूर की ख़्वाहिश
तिरी गली में है प्यारे मक़ाम आशिक़ का
ग़ुरूर-ए-हुस्न न कर जज़्बा-ए-ज़ुलेख़ा देख
किया है इश्क़ ने यूसुफ़ ग़ुलाम आशिक़ का
तिरे ही नाम की सिमरण है मुझ को और तस्बीह
तू ही है विर्द हर इक सुब्ह-ओ-शाम आशिक़ का
वफ़ूर-ए-इश्क़ को आशिक़ ही जानता है 'नसीर'
हर इक समझ नहीं सकता कलाम आशिक़ का
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