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जूँ ज़र्रा नहीं एक जगह ख़ाक-नशीं हम - शाह नसीर कविता - Darsaal

जूँ ज़र्रा नहीं एक जगह ख़ाक-नशीं हम

जूँ ज़र्रा नहीं एक जगह ख़ाक-नशीं हम

ऐ महर-ए-जहाँ-ताब जहाँ तू है वहीं हम

शब हल्क़ा-ए-रिन्दाँ में अजब सैर थी साक़ी

साग़र को समझते थे मह-ए-हाला-नशीं हम

सेते हैं सदा रश्क-ए-अतू-ए-क़लमी देख

हर तार-ए-सरिश्क अपने से दामान-ए-ज़मीं हम

ऐ रश्क-ए-नसीम-ए-सहरी क्यूँ है मुकद्दर

गुलशन में तुझे देखते हैं चीं-ब-जबीं हम

बरपा न कहीं कीजे अब शोर-ए-क़यामत

वहशत-ज़दा ऐ ख़ाना-ए-ज़ंजीर नहीं हम

सर-रिश्ता रह-ए-इश्क़ का अब हाथ लगा है

जूँ दाना-ए-तस्बीह न ठहरेंगे कहीं हम

ले कर मह-ओ-ख़ुर्शीद की फिर तेग़-ओ-सिपर को

ऐ चर्ख़ तुझे जानते हैं बर-सर-ए-कीं हम

यक दस्त उठा लेवेंगे इस सफ़्हा-ए-दिल पर

नक़्श-ए-क़दम-ए-यार को जूँ नक़्श ओ नगीं हम

ईसा-नफ़स अब जल्द पहुँच तू कि हैं तुझ बिन

मेहमान कोई दम के दम-ए-बाज़-पसीं हम

खो बैठे हैं उस इश्क़ के हाथों से 'नसीर' अब

होश-ओ-ख़िरद ओ सब्र-ओ-क़रार ओ दिल-ओ-दीं हम

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In Hindi By Famous Poet Shah Naseer. is written by Shah Naseer. Complete Poem in Hindi by Shah Naseer. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.