इस दिल को हम-कनार किया हम ने क्या किया
इस दिल को हम-कनार किया हम ने क्या किया
दुश्मन को दोस्त-दार किया हम ने क्या किया
रहता यही है दिल में शश-ओ-पंज-ए-यार से
आईना क्यूँ दो-चार किया हम ने क्या किया
मुट्ठी भरम की ग़ुंचा-सिफ़त इस चमन में खोल
असरार आश्कार किया हम ने क्या किया
दर-पर्दा दोस्ती हुई हम अपने हक़ में आह
मुतरिब-पिसर को यार किया हम ने क्या किया
इस्लाम भी ब-जब्र था ऐ शैख़-ओ-बरहमन
क्यूँ जब्र इख़्तियार किया हम ने क्या किया
तस्बीह तो पड़ी थी गले एक दूसरी
ज़ुन्नार को भी हार किया हम ने क्या किया
दिल को दुखा के चीन-ए-जबीन-ए-परी-वशाँ
जूँ बर्क़ बे-क़रार किया हम ने क्या किया
कहने लगा वो क़ब्र पे आशिक़ की क्यूँ गुज़र
सहवा सर-ए-मज़ार किया हम ने क्या किया
हैहात आश्ना थे जो मौज-ए-बला के पेच
उन का न इंतिज़ार किया हम ने क्या किया
बहर-ए-जहाँ से दीदा-ओ-दानिस्ता जूँ हुबाब
बा-चश्म-ए-तर गुज़ार किया हम ने क्या किया
दश्त-ए-जुनूँ से तोड़ के रिश्ते को जेब के
दामाँ भी तार किया हम ने क्या किया
उस सर्व-क़द के इश्क़ में ये फल मिला 'नसीर'
हर सद आह वार किया हम ने क्या किया
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