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हुआ अश्क-ए-गुलगूँ बहार-ए-गरेबाँ - शाह नसीर कविता - Darsaal

हुआ अश्क-ए-गुलगूँ बहार-ए-गरेबाँ

हुआ अश्क-ए-गुलगूँ बहार-ए-गरेबाँ

ब-रंग-ए-रग-ए-गुल है तार-ए-गरेबाँ

रहे है सदा चाक मातम-कदा में

तहय्युर नहीं इख़्तियार-ए-गरेबाँ

कभू हाथ दामन तक उस के न पहुँचा

चे-जाए कि क़ुर्ब-ओ-जवार-ए-गरेबाँ

तिरी देख आँखें ख़जिल होगी नर्गिस

झुका चश्म को है दो-चार-ए-गरेबाँ

बने मौज रो आस्तीं गर निचोड़ूँ

हो गिर्दाब हर जा फ़िशार-ए-गरेबाँ

सबा कब उठाते हैं जूँ निकहत-ए-गुल

सुबुक-रूह गर्दन पे बार-ए-गरेबाँ

सुपुर्द हम ने अब नासेहा कर दिया है

ब-दस्त-ए-जुनूँ कारोबार-ए-गरेबाँ

जहाँ में है ख़ुर्शीद से सुब्ह रौशन

कि आता है तिक्मा ब-कार-ए-गरेबाँ

गले में है चम्पा कली या किसू के

हैं लख़्त-ए-जिगर हम-कनार-ए-गरेबाँ

लगाई नहीं उस ने गोटे की मग़ज़ी

हुई बर्क़ आ कर निसार-ए-गरेबाँ

नहीं तौक़ पहने है कुमरी कि है अब

ये ज़ेब-ए-गुलू-बंद ओ हार-ए-गरेबाँ

गुलिस्ताँ में ये मोतकिफ़ है जो अब है

सर-ए-ग़ुंचा सोहबत बरार-ए-गरेबाँ

'नसीर' अब यहाँ चश्म-ए-सोज़न है महरम

ज़-सर-रिश्ता-हाए वक़ार-ए-गरेबाँ

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In Hindi By Famous Poet Shah Naseer. is written by Shah Naseer. Complete Poem in Hindi by Shah Naseer. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.