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दम ले ऐ कोहकन अब तेशा-ज़नी ख़ूब नहीं - शाह नसीर कविता - Darsaal

दम ले ऐ कोहकन अब तेशा-ज़नी ख़ूब नहीं

दम ले ऐ कोहकन अब तेशा-ज़नी ख़ूब नहीं

जान-ए-शीरीं को न खो कोह-कनी ख़ूब नहीं

टुक तू हँस-बोल ये ग़ुंचा-दहनी ख़ूब नहीं

रश्क-ए-गुल इतनी भी हाँ कम-सुख़नी ख़ूब नहीं

सर पे कुमरी को बिठाया तो है तू ने पर सर्व

तेरी आज़ाद-वशी बे-कफ़नी ख़ूब नहीं

क़ाबिल-ए-चश्म-नुमाई है तू ऐ तिफ़्ल-ए-सरिश्क

अबतर इतना भी न हो नाशुदनी ख़ूब नहीं

फ़स्ल-ए-गुल आने दे दिखला न अभी से ज़ंजीर

ये रविश मौज-ए-नसीम-ए-चमनी ख़ूब नहीं

मनअ हँसने से तो करता नहीं ऐ बर्क़-वशो

फिर शरारत से ये चश्मक-ज़दनी ख़ूब नहीं

हो सके तुझ से तो कर मुर्ग़-ए-चमन गुल का इलाज

उस को बीमारी-ए-आज़ा-शिकनी ख़ूब नहीं

कोई दम और भी उस अबरू-ए-पुर-ख़म को छू

अस्फ़हानी ये अभी तेग़ बनी ख़ूब नहीं

चश्म से उस की न कर दाव-ए-हम-चश्मी देख

कि ख़ता ऐसी ग़ज़ाल-ख़ुतनी ख़ूब नहीं

मार खाएगा वो ख़य्यात कि जिस ने तेरे

बंद जामे के लिए नाग-फनी ख़ूब नहीं

मुँह को देख अपने तू और उस के लब-ए-लाल को देख

रू-कशी उस से अक़ीक़-ए-यमनी ख़ूब नहीं

तर्क चश्म-ए-बुत-ए-बद-केश ख़याल उस का छोड़

मुर्ग़-ए-दिल सहमे है नावक-फ़गनी ख़ूब नहीं

शाख़-ए-गुल है कि कमर बाद से लचके है तिरी

ऐ मियाँ इतनी भी नाज़ुक-बदनी ख़ूब नहीं

मैं भी हूँ बादिया-पैमा-ए-जुनूँ ऐ मजनूँ

इस क़दर आगे मिरे लाफ़-ज़नी ख़ूब नहीं

छलनी काँटों से हुए गो मिरे तलवे लेकिन

दश्त-ए-वहशत की अभी ख़ाक छनी ख़ूब नहीं

ज़हर खा जाऊँगा ऐ साक़ी-ए-पैमाना-ब-कफ़

बाज़ आ जाने दे पैमाँ-शिकनी ख़ूब नहीं

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In Hindi By Famous Poet Shah Naseer. is written by Shah Naseer. Complete Poem in Hindi by Shah Naseer. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.