शाह नसीर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शाह नसीर (page 5)
नाम | शाह नसीर |
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अंग्रेज़ी नाम | Shah Naseer |
जन्म की तारीख | 1756 |
मौत की तिथि | 1838 |
जन्म स्थान | Delhi |
मेरी तुर्बत पर चढ़ाने ढूँडता है किस के फूल
मैं ने बिठला के जो पास उस को खिलाया बीड़ा
मैं ज़ोफ़ से जूँ नक़्श-ए-क़दम उठ नहीं सकता
लिया न हाथ से जिस ने सलाम आशिक़ का
लगा जब अक्स-ए-अबरू देखने दिलदार पानी में
क्यूँ न कहें बशर को हम आतिश-ओ-आब ओ ख़ाक-ओ-बाद
कुछ सरगुज़िश्त कह न सके रू-ब-रू क़लम
ख़ुदा के वास्ते चेहरे से टुक नक़ाब उठा
ख़ानदान-ए-क़ैस का मैं तो सदा से पीर हूँ
ख़ाल-ए-रुख़ उस ने दिखाया न दोबारा अपना
ख़ाल-ए-मश्शाता बना काजल का चश्म-ए-यार पर
कर के आज़ाद हर इक शहपर-ए-बुलबुल कतरा
कभू न उस रुख़-ए-रौशन पे छाइयाँ देखीं
जूँ ज़र्रा नहीं एक जगह ख़ाक-नशीं हम
जुदा नहीं है हर इक मौज देख आब के बीच
जो रक़ीबों ने कहा तू वही बद-ज़न समझा
जो गुज़रे है बर आशिक़-ए-कामिल नहीं मालूम
जो ऐन वस्ल में आराम से नहीं वाक़िफ़
जिस्म उस के ग़म में ज़र्द-अज़-ना-तवानी हो गया
जिगर का जूँ शम्अ काश या-रब हो दाग़ रौशन मुराद हासिल
जब तलक चर्ब न जूँ शम्-ए-ज़बाँ कीजिएगा
इस दिल को हम-कनार किया हम ने क्या किया
हम फड़क कर तोड़ते सारी क़फ़स की तीलियाँ
हुआ अश्क-ए-गुलगूँ बहार-ए-गरेबाँ
हो चुकी बाग़ में बहार अफ़सोस
हाथों को उठा जान से आख़िर को रहूँगा
हरम को शैख़ मत जा है बुत-ए-दिल-ख़्वाह सूरत में
हार बना इन पारा-ए-दिल का माँग न गजरा फूलों का
गो सियह-बख़्त हूँ पर यार लुभा लेता है
ग़र्क़ न कर दिखला कर दिल को कान का बाला ज़ुल्फ़ का हल्क़ा