जूँ क़दम यार ने घर से मिरे दर पर रक्खा

जूँ क़दम यार ने घर से मिरे दर पर रक्खा

सर रखा ज़ानू पे मैं हाथ जिगर पर रक्खा

हम को सय्याद ने रक्खा जो क़फ़स में तो आह

दस्त-ए-शफ़क़त कभी ज़ालिम ने न सर पर रक्खा

संग-ए-रह उस की गली का जो कोई हाथ आया

मिस्ल-ए-गुल मैं ने उठा कर उसे सर पर रक्खा

बैठे बैठे तुझे कौन आ गया याद आज 'कमाल'

तू ने रूमाल जो ले दीदा-ए-तर पर रक्खा

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In Hindi By Famous Poet Shah Kamaluddin Kamal. is written by Shah Kamaluddin Kamal. Complete Poem in Hindi by Shah Kamaluddin Kamal. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.