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बुझते हुए शो'लों को हुआ क्यूँ नहीं देते - शाह जी अली कविता - Darsaal

बुझते हुए शो'लों को हुआ क्यूँ नहीं देते

बुझते हुए शो'लों को हुआ क्यूँ नहीं देते

फिर आ के हमें यार रुला क्यूँ नहीं देते

या रूठ चलो मुझ से तो या टूट के बरसो

हर रोज़ का झगड़ा है चुका क्यूँ नहीं देते

शायद कि मलाएक तिरी नुसरत को उतर आएँ

फ़रियाद से फिर अर्श हिला क्यूँ नहीं देते

हर रोज़ का फ़ाक़ा है मशक़्क़त से कटेगा

रोते हुए बच्चों को सुला क्यूँ नहीं देते

वहशत के गली कूचों में तार उस की रिदा है

सोए हुए इंसाँ को जगा क्यूँ नहीं देते

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In Hindi By Famous Poet Shah Ji Ali. is written by Shah Ji Ali. Complete Poem in Hindi by Shah Ji Ali. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.