ना-गुज़ीर-ए-रिश्तगी सा है तो हो

ना-गुज़ीर-ए-रिश्तगी सा है तो हो

वर्ना मुझ से क्या इलाक़ा है तो हो

वो मुझे देखे न मैं पाऊँ उसे

अब कोई मेरा शनासा है तो हो

पुर-कशिश हैं रास्ते के पेच-ओ-ख़म

चैन पाने का ठिकाना है तो हो

सामने हैं आसमानी वुसअतें

बे-ज़मीनी का ज़माना है तो हो

चेहरा-ए-एहसास पर है ताज़गी

आदमी होना पुराना है तो हो

नाज़ुकी इक गुल-बदन की साथ है

अब अगर पहलू में काँटा है तो हो

अपनी बनती ही नहीं है 'शाह' से

आदमी ये शख़्स अच्छा है तो हो

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In Hindi By Famous Poet Shah Husain Nahri. is written by Shah Husain Nahri. Complete Poem in Hindi by Shah Husain Nahri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.