क्यूँ मुश्त-ए-ख़ाक पर कोई दिल दाग़दार हो

क्यूँ मुश्त-ए-ख़ाक पर कोई दिल दाग़दार हो

मर कर भी ये हवस कि हमारा मज़ार हो

बढ़ जाए ग़म का सिलसिला कोहसार की तरह

तूलानी गर ये ज़िंदगी-ए-मुस्तआर हो

इस सैद-गाह में वही निकलेगा बच के साफ़

जो सैद सब से पहले अजल का शिकार हो

उस बुल-हवस की मौत के क़ुर्बान जाइए

जो फिर दोबारा जीने का उम्मीद-वार हो

हस्ती का तौक़ तो है क़यामत पस-ए-वफ़ात

या-रब कहीं ये मेरे गले का न हार हो

यकसाँ है अहल-ए-दिल के लिए इम्बिसात-ओ-ग़म

बाग़-ए-जहाँ में आए ख़िज़ाँ या बहार हो

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In Hindi By Famous Poet Shah Deen Humayun. is written by Shah Deen Humayun. Complete Poem in Hindi by Shah Deen Humayun. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.