सुब्हा से है न काम न ज़ुन्नार से ग़रज़
सुब्हा से है न काम न ज़ुन्नार से ग़रज़
है मुझ को सिर्फ़ गेसू-ए-दिलदार से ग़रज़
है दिल को मेरी कूचा-ए-दिलदार से ग़रज़
बुलबुल को जैसे होती है गुलज़ार से ग़रज़
बीमार-ए-इश्क़ हूँ नहीं ईसा से मुझ को काम
है सिर्फ़ मुझ को शर्बत-ए-दीदार से ग़रज़
मुझ को दिया जुनूँ ने है उर्यानी का लिबास
मुझ को नहीं है जुब्बा-ओ-दस्तार से ग़रज़
ख़्वाहिश नहीं है साया-ए-तूबा की ज़ाहिदा
है मुझ को रोज़-ओ-शब क़द-ए-दिलदार से ग़रज़
मुझ को नहीं है ख़ाना-ए-बुस्ताँ से कुछ भी काम
रखता हूँ उस के साया-ए-दीवार से ग़रज़
है ज़िंदगी मिरी मय-ए-गुल-रंग से मुदाम
बे-वज्ह मुझ को है नहीं ख़ुम्मार से ग़रज़
मज़हब है इश्क़ और है रिंदी से मुझ को कार
काफ़िर से है न काम न दीं-दार से ग़रज़
ज़ख़्मी-ए-तेग़-ए-इश्क़ हूँ इस वास्ते मुझे
हरगिज़ नहीं है मरहम-ए-ज़ंगार से ग़रज़
दिल को मिरे है जौर से उस के हमेशा कार
हो मुश्तरी को जैसे ख़रीदार से ग़रज़
रखता हूँ मैं ग़रज़ शह-ए-ख़ादिम की इश्क़ से
'आसिम' मुझे है यार न अग़्यार से ग़रज़
(584) Peoples Rate This