मुझे साक़ी-ए-चश्म-ए-यार ने अजब एक जाम पिला दिया
मुझे साक़ी-ए-चश्म-ए-यार ने अजब एक जाम पिला दिया
कि नशे ने जिस के ग़म-ए-जहाँ मिरे दिल से साफ़ भुला दिया
करूँ क्या बयान मैं वस्फ़ अब मय-ए-नाब-ए-इश्क़ का दोस्तो
कि ख़ुदी की क़ैद से यक-क़लम ब-ख़ुदा कि मुझ को छुड़ा दिया
असर उस की चश्म-ए-करम का अब करूँ किस ज़बान से मैं बयाँ
कि ब-हर मकान-ओ-ब-हर तरफ़ मुझे हक़ का जल्वा दिखा दिया
किसी आरज़ू की रही नहीं है मिरे दिल में कुछ भी समाए अब
मुझे साक़िया मय-ए-लुत्फ़ से तू ने क्या ही ख़ूब चखा दिया
तिरी तेग़ ग़म्ज़ा-ए-चश्म ने जो हैं क़त्ल मुझ को किया सनम
तो वहीं पे ईसा-ए-नाज़ ने मुझे एक दम में जिला दिया
न फ़क़त तुम्हारी निगाह ने मिरे दिल को हाथ से ले लिया
कि तुम्हारी ज़ुल्फ़-ए-दराज़ ने मुझे सौ बला में फँसा दिया
न थी चश्म मुझ को ये ऐ सनम कि तुम्हारी चश्म ने यक-क़लम
मिरे रख़्त-ए-अक़्ल-ओ-शकेब को बर्क़-ए-निगह से जला दिया
मुझे तू ने अपने जमाल के दिखला के तरहें नौ बनो
कभू मिस्ल-ए-अब्र रुला दिया कभू मिस्ल-ए-बर्क़ हँसा दिया
मैं फ़िदा-ए-ख़ादिम-ए-शाह हूँ दिल-ओ-जान से 'आसिम' जिस ने अब
जिसे बूझना ही मुहाल था उसे एक पल में सूझा दिया
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