Ghazals of Shah Aasim
नाम | शाह आसिम |
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अंग्रेज़ी नाम | Shah Aasim |
उट्ठी है जब से दिल में मिरे इश्क़ की तरंग
सुब्हा से है न काम न ज़ुन्नार से ग़रज़
शक्ल-ए-जानाना जा-ब-जा हैं हम
सन लेवे अगर तू मिरी दिलदार की आवाज़
क़ैद-ए-दिल से है मिरी काकुल-ए-पेचाँ नाज़ाँ
मुझे साक़ी-ए-चश्म-ए-यार ने अजब एक जाम पिला दिया
लश्कर-ए-इश्क़ आ पड़ा है मुल्क-ए-दिल पर टूट टूट
क्या कहूँ तुम से मैं यारो कौन हूँ
कोई दम थमता नहीं बारान-ए-अश्क
कौन-ओ-मकाँ में यारो आबाद हैं तो हम हैं
इस्लाम और कुफ़्र हमारा ही नाम है
इश्क़ के अक़्लीम में चाल-ओ-चलन कुछ और है
इस दिल में अगर जल्वा-ए-दिल-दार न होता
है फ़ना बिस्मिल्लाह-ए-दीवान-ए-इश्क़
है दिल को मेरे आरिज़-ए-जानाँ से इर्तिबात
है अयाँ रू-ए-यार आँखों में
दस्तियाब उस को हुआ जब से है गुल-दस्ता-ए-दाग़
बे-ख़ुदी में अजब मज़ा देखा
बंदा-ए-इश्क़ हूँ जुज़ यार मुझे काम नहीं
ब-चशम-ए-हक़ीक़त जहाँ देखता हूँ
अजब तू ने जल्वा दिखाया मुझे
अफ़्साना मिरे दिल का दिल-आज़ार से कह दो
आशिक़-ए-ज़ार हूँ जुज़ इश्क़ मुझे काम नहीं