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शक़ आफ़ियत-कनार किनारे को कर गई - शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा कविता - Darsaal

शक़ आफ़ियत-कनार किनारे को कर गई

शक़ आफ़ियत-कनार किनारे को कर गई

दरिया की मौज सर को पटक कर गुज़र गई

तोहमत का सैल सुब्ह को उठने लगा कि शब

दस्तक थी एक दर पे सदा दर-ब-दर गई

ग़ारत-गर-ए-सुकूँ थीं नवा-हा-ए-ख़ून-ए-बल्ब

जंगल की शाम शहर में आई तो डर गई

रोता फिरेगा रात के रस्तों पे माहताब

आग़ोश-ए-अर्ज़-ए-ख़ाक तो सूरज से भर गई

आराम-ए-जाँ था ख़्वाब-ए-सुकूँ आँख जब खुली

सैल-ए-फ़ना उतर गया मिट्टी बिखर गई

ना-कर्दा कारियों की पशेमानियाँ न पूछ

उम्र-ए-अज़ीज़ ढूँडते फिरिए किधर गई

तेरे हुज़ूर कौन सा नज़राना था क़ुबूल

दिल सा गुहर भी ले के मिरी चश्म-ए-तर गई

दीवार-ओ-दर पे जिन के लहू बोलता रहा

मौज-ए-फ़ना वो सारे मकाँ ढेर कर गई

ख़ुश्बू-ए-मर्ग का न ठिकाना मिला कोई

मैं भी ग़ुबार-ए-राह रहा वो जिधर गई

अब गोश-बर-सदा हुए हम दोस्तो तो क्या

आवाज़ दूर की थी समाअ'त-सफ़र गई

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In Hindi By Famous Poet Shafqat Tanveer Mirza. is written by Shafqat Tanveer Mirza. Complete Poem in Hindi by Shafqat Tanveer Mirza. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.